



बॉलीवुड फिल्मों के सेट डिजाइनर मुकेश सहनी बिहार में इन दिनों अपनी संकल्प यात्रा के सहारे दोनों गठबंधनों को ताकत बता रहे हैं. इसके साथ ही 14 फीसदी से अधिक अपनी अतिपिछड़ी आबादी खासकर मल्लाहों को हाथ में गंगाजल देकर वोट नहीं बेचने का और वीआईपी को ही वोट देने का संकल्प दिला रहे हैं. सहनी अपने लोगों से वादा करते हैं कि जो मल्लाह-निषाद को ओबीसी से हटाकर अनुसूचित जाति में शामिल कराएगा, हम उसके साथ रहेंगे. इस दौरान अपने वोटरों को उनकी ताकत का एहसास कराते हुए कहते हैं कि आप ‘वीआईपी’ (विकासशील इंसान पार्टी) पार्टी के कार्यकर्ता हैं. फिर वे वीआईपी का मतलब समझाते हुए कहते हैं, “लोकतंत्र में वीआईपी वही होता है जिसके पास अधिक लोग होते हैं. क्योंकि हम बिहार में 14 फ़ीसदी से अधिक हैं. इसलिए हम अति पिछड़ा आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसलिए हम ‘वीआईपी’ हैं.” लेकिन, NDA और INDIA दोनों मुकेश सहनी से इन दिनों बारबर की दूरी बनाये हुए है. हालांकि, केंद्र सरकार ने जब सहनी को वाई श्रेणी की सुरक्षा दी तो यह कयास जरूर लगाया जाने लगा कि सहनी एनडीए का घटक बनेंगे. लेकिन, दिल्ली में एनडीए की हुई बैठक में उन्हें निमंत्रण नहीं मिला. इसके बाद बिहार में 14 फीसदी वोट के के लिए राजनीति शुरू हो गई. इधर मुकेश सहनी कहते हैं कि जो कोई मल्लाह-निषादों को अनुसूचित जाति में शामिल करा देगा वही मेरा मित्र होगा. हमारे समाज का वोट भी उसी को मिलेगा.
क्या है वोटों का समीकरण
बिहार के चुनाव में जातीय समीकरण सबसे बड़ा फैक्टर माना जाता रहा है. यही कारण है कि बीजेपी इस दफा लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अपने इस समीकरण को ठीक करने में लगी है. लालू-नीतीश के वोट बैंक में सेंधमारी कर बीजेपी ने नीतीश कुमार के परंपरागत लव-कुश वोटर को साधने के लिए आरसीपी सिंह, उपेंद्र कुशवाहा और फिर सम्राट चौधरी को प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बनाकर 12 प्रतिशत कुर्मी और कोइरी के वोटरों को अपने साथ करने का प्रयास किया है. दलितों का वोट भी बिहार में एक बड़ा वोट बैंक है. यह वोट करीब 14 फीसदी के करीब है. इनमें पांच फीसदी के करीब पासवान हैं बाकी करीब 11 फीसदी वोट बैंक महादलित जातियां (पासी, रविदास, धोबी, चमार, राजवंशी, मुसहर, डोम आदि) हैं. बीजेपी ने इसे जोड़ने के लिए रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस, उनके बेटे चिराग पासवान और जीतन राम मांझी को अपने साथ जोड़ा है.
20 फीसदी उच्च जातियों का (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ) का वोट है. कांग्रेस के कमजोर होने के बाद ये वोट बीजेपी के साथ है. इसे अब करीब-करीब बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है. हालांकि, कांग्रेस ने इस दफा भूमिहार समाज से अपना प्रदेश अध्यक्ष देकर उच्च जातियों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास जरूर किया है. लेकिन इसका कांग्रेस को कितना लाभ मिलेगा यह तो समय ही बतायेगा. लेकिन कांग्रेस अपने परंपरागत वोट बैंक को एकजुट करने का एक प्रयास जरूर किया है. इधर, महागठबंधन ओबीसी के 26 प्रतिशत वोट पर अपना दावा करती है. उनका कहना है कि 14 फीसदी यादव तो हमारे साथ हैं ही. नीतीश कुमार के महागठबंधन के साथ रहने के कारण 8 फीसदी कुशवाहा और 4 फीसदी कुर्मी वोट बैंक भी महागठबंधन में ही पड़ेंगे. इसके अतिरिक्त बिहार के करीब 16 फीसदी मुस्लिमों का वोट बैंक भी महागठबंधन के पास ही है. इस प्रकार महागठबंधन बिहार में 42 फीसदी वोट बैंक पर अपना दावा करती है. जबकि बीजेपी ने छोटे- छोटे दलों के साथ अपना गठबंधन कर 46 फीसदी वोट बैंक पर अपना दावा कर रही है.
एनडीए के लिए सहनी क्यों जरुरी
बिहार में अति पिछड़ी मतदाताओं की संख्या 26 फीसदी है. इसमें लोहार, कहार, सुनार, कुम्हार, ततवा, बढ़ई, केवट, मलाह, धानुक, माली, नोनी आदि जातियां आती हैं. इसमें 14 फीसदी के आस पास मल्लाह जाति के लोग हैं. इस वोट बैंक पर मुकेश सहनी दावा करते हैं और उनको गोलबंद करने में भी लगे हैं. सिमरी बख्तियारपुर, बोचहां और कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में इस समाज के लोगों ने सहनी के साथ खड़ा होकर जीती हुई बाजी को बदलने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. सहनी कहते हैं कि मेरी इसी ताकत के कारण पिछले 6 माह से केंद्रीय मंत्री सहित कई बड़े नेता एनडीए में शामिल होने के लिए मेरी खुशामद कर रहे हैं. लेकिन मेरा उद्देश्य मल्लाह-निषादों को अनुसूचित जाति में शामिल कराना है. जो यह करेगा हमारा यह वोट उसी को मिलेगा. बीजेपी को अपना शत्रु बताते हुए वे कहते हैं कि भाजपा ने हमारे साथ गद्दारी की, हमारे विधायकों को तोड़ा. विधान परिषद में एक सीट नहीं दिया. मुझे मंत्रिमंडल से हटाया. इन सबके बावजूद अगर केंद्र की भाजपा सरकार मल्लाह-निषादों को अनुसूचित जाति में शामिल करा दे, तो मैं उसको मित्र मान लूंगा. बीजेपी ऐसा नहीं करती है तो मेरे पास विकल्प खुले हैं. सहनी और बीजेपी भी यह जानती है कि मुकेश सहनी अकेले कुछ नहीं कर सकते हैं. लेकिन, जिस किसी के साथ वे जाते हैं वह गठबंधन जरूर मजबूत हो जायेगा. यही कारण है कि एनडीए और महागठबंधन दोनों सहनी को अपने साथ जोड़ना चाह रहे हैं. लेकिन यह भी सत्य है कि दोनों इससे बराबर की दूरी भी बनाए हुए हैं.
2019 में किस दल को कितने प्रतिशत वोट
लोकसभा 2019 के चुनाव में बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी का बिहार में गठबंधन था. बीजेपी और जेडीयू ने बराबर (17-17) सीटों पर चुनाव लड़ा. एलजेपी को शेयरिंग में 6 सीटें मिली थीं. एनडीए को तकरीबन 53 प्रतिशत वोट मिले थे और 40 में से 39 सीटों पर अपना कब्जा कर लिया था. महज एक सीट कांग्रेस की झोली में गई थी. आरजेडी का तो खाता भी नहीं खुला था. लोकसभा 2019 के चुनाव में एनडीए को मिले वोटों में बीजेपी की हिस्सेदारी 23.58 फीसद तो जेडीयू की 21.81 फीसद थी. इसी प्रकार 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी जेडीयू का वोट घट कर 15 फीसदी हो गई थी. हालांकि विधानसभा के इस चुनाव में भी बीजेपी और जेडीयू साथ-साथ थे. लोकसभा की तर्ज पर दोनों बराबर सीटों पर ही चुनाव लड़े थे. सीएम के लिए नीतीश कुमार का चेहरा भी सामने था. इससे एक बात तो साफ ही है कि नीतीश को लव-कुश समीकरण के 10 फीसदी वोटों के अलावा दूसरी जातियों के महज 5 प्रतिशत ही वोट मिले. दूसरा यह कि बीजेपी के वोट नीतीश को ट्रांसफर नहीं हुए. और सबसे बड़ा कारण चिराग पासवान थे. नीतीश कुमार खुद भी स्वीकार करते हैं कि चिराग पासवान की वजह से विधानसभा चुनाव में करीब दो दर्जन उम्मीदवार हार गए.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
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Tags: Congress, India, Jdu, Mukesh Sahni, NDA, RJD, बिहार
FIRST PUBLISHED : July 31, 2023, 16:43 IST